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मछुआरा और नन्ही मछली से लाभ




एक बहुत ही गरीब मछुआरा था। वह प्रतिदिन मछली पकड़ता और उन्हें बेचकर परिवार को पालता था।एक बार सारे दिन प्रयत्न करने के बाद भी वह एक भी मछली नहीं पकड़ सका।वह बहुत दुखी हो गया क्योंकि वह अपने परिवार को खिलाने के लिए उसके पास कुछ नहीं था।उसने साहस जुटाकर अंतिम बार जाल डाला तो एक नन्ही मछली फंसी। चलो कुछ तो मिली....
यह सोच कर उसे खुशी-खुशी जूही वह अपनी टोकरी में डालने लगा, मछली बोली, " श्रीमान! मुझे अभी छोड़ दीजिए। मैं बहुत छोटी हूं। पर मैं वादा करती हूं कि बड़ी होकर मैं आपका भोजन स्वयं बनूंगी पर अभी मुझे जाने दे। "यह सुनकर मछुआरे को उस पर बहुत दया आई वह पल भर के लिए सोच में पड़ गया फिर उसने कहा," नहीं, यदि मैं तुम्हें छोड़ दिया तो फिर तुम्हें पकड़ नहीं पाऊंगा।तुम मेरे हाथ नहीं आओगी। मैं बच्चों को क्या खिलाऊंगा.... "




 सीख - बड़े-बड़े वादों से तो छोटा लाभ कहीं अच्छा है





        बूंद सा जीवन है इंसान का
       लेकिन अहंकार सागर से भी बड़ा है
 ना बादशाह चलता है और ना एक्का चलता है
         यह खेल है अपने अपने कर्मों का
        यहां सिर्फ कर्मों का सिक्का चलता है
       नींद तो प्रतिदिन ही खुलती है परंतु
      आंखें कभी-कभी भावनाएं ही तो है
    जो दूर रहकर भी अपनों का निकटता
             का बोध कराती है
          वरना दूरी तो दोनों आंखों के मध्य 

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