चंद्रपुर गांव में एक लकड़हारा रहता था। का नाम
भोला था। वह बहुत परिश्रम ही था। सुबह उठकर
कलेवा करता, अपनी कुल्हाड़ी उठाता और जंगल
में दिनभर लकड़िया तोड़ा करता था। शाम को
लकड़ियों का गट्ठर बाजार में बेचकर जो पैसे पाता
उससे अपने परिवार का पालन पोषण करता था।
वह कभी आलस नहीं करता था।
1 दिन रोज की तरह भोला कुएं के पास में लगे हुए
पेड़ की लकड़ी काट रहा था। वह अपना काम
बहुत ध्यान से कर रहा था इतने में बहुत जोर से
कुल्हाड़ी पेड़ की टहनी पर मारते समय उसके हाथ
से कुल्हाड़ी छूट कर कुएं में गिर गई। कुएं के पास
बैठकर वह रोने लगा।, और भगवान को कहने
लगा है, हे भगवान, यह कुल्हाड़ी तो मेरे पूरे
परिवार के रोटी का सहारा थी। अब मैं क्या करूं
मेरे पास दूसरी कुल्हाड़ी भी तो नहीं है ।जब वह रो
रहा था तभी अचानक कुएं में से एक आदमी बाहर
आया और उस से पूछने लगा, क्यों रोते हो,? क्या
हुआ मुझे बताओ ? हो सके तो मैं तुम्हारी मदद
करूंगा। रोते-रोते उसने उस आदमी को अपनी
कहानी बता दी।
कहानी सुनते ही मददगार आदमी कुएं में उतर कर
एक कुल्हाड़ी लेकर ऊपर आया और उसने भोला
से पूछा।? क्या यही है तुम्हारी कुल्हाड़ी अगर यही
है तो इसे ले लो
भोला ने कहा_नहीं, यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है।
यह तो सोने की कुल्हाड़ी है
उस आदमी ने कुएं से और एक कुल्हाड़ी
निकालकर भोला से कहा।, तो फिर यह कुल्हाड़ी
तुम्हारी होई । इसे ले लो। कुल्हाड़ी देखकर
भोला ने कहा ।,नहीं। यह भी मेरी कुल्हाड़ी नहीं है
यह तो चांदी की कुल्हाड़ी हैं
तीसरी बार उस आदमी ने लोहे की कुल्हाड़ी पानी
से निकालकर भोला से पूछा।,
तो यह कुल्हाड़ी तुम्हारी है क्या ? अपनी कुल्हाड़ी
देखकर बोला बहुत प्रसन्न हुआ। वह बोला, हां यही
मेरी कुल्हाड़ी है। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
वह आदमी कोई साधारण आदमी नहीं था वह
भगवान थे। उन्होंने बोला की परीक्षा ली।
लकड़हारे की सच्चाई और ईमानदारी देखकर
भगवान उस पर प्रसन्न हो गए और उन्होंने सोने की
और चांदी की कुल्हाड़ी या बोला को इनाम में दे दिया।
सीख_। सच्चाई की हमेशा जीत होती है
हमेशा सच की राह पर चलना चाहिए
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