मिर्जापुर गांव में परमानंद नाम के सज्जन रहते थे
उनके चार बेटे थे उनका नाम घनश्याम मेघ श्याम
दीप श्यामऔर राधेश्याम था चारों भाई बहुत
होशियार थे
एक दिन चारों भाई विद्या अध्ययन करने के लिए
घर से बाहर निकले चारों भाई चलते _चलते एक
जंगल में पहुंचे वह रात उन्होंने उस जंगल में एक
साथ गुजारी
दूसरे दिन चारों भाई सुबह जल्दी उठे और 1 वर्ष
पश्चात उसी स्थान पर मिलने का वादा करके
अलग-अलग दिशा में चल पड़े
1 वर्ष पूरा होने के बाद जंगल में नियत स्थान पर
चारों भाई कट्ठा हुए
चारों भाइयों ने भिन्न-भिन्न विषयों का ज्ञान अवगत
किया था वह आपस में बात करते _करते घर
वापस जा रहे थे इतने में रास्ते में उन्हें उस जगह
मरे हुए शेर की हड्डियों का कंकाल मिला तुरंत
घनश्याम बोला
मैं अपने विद्या से इन हड्डियों से शेर का आकार
बना सकता हू
राधेश्याम के मना करने के बावजूद भी उन हड्डियों
से उसने शेर का आकार बना दिया
मेघ श्याम तो कंकाल पर चमड़ी लगाने का
अभ्यास करके आया था वह बोला इसमें कौन सी
बड़ी बात है मैं इसके ऊपर अपनी सीखी हुई विद्या
से चमड़ी लगा सकता हूं यह सुनते ही राधेश्याम ने
उसे भी बहुत समझ आया लेकिन वह नहीं माना
और शेर के आकार पर चमड़ी लगा दी
दीप श्याम _बोला यह तो कुछ भी नहीं मैं मरे हुए
शेर में अपनी विद्या से जान पूछ सकता हूं
पहले राधेश्याम ने घनश्याम और मेघ श्याम की
बातों को विरोध किया था फिर भी वह दोनों नहीं
माने थे अब उसने दीप श्याम को भी रोका मरे हुए
शेर में जान फूंकने की बात को साफ मना किया
लेकिन दीप श्याम मानने को तैयार ना हुआ
फिर राधेश्याम बोला_मैंने तुम सबको बहुत रोका
अब यदि तुम मेरी बात नहीं मानना चाहते हो तो
एक काम करो मुझे पेड़ के ऊपर चढ़ जाने दो फिर
अपनी विद्या का प्रदर्शन करना
सब ने इसके लिए हामी भरी
राधेश्याम पेड़ पर चढ़कर बैठ गया तीसरे भाई ने
अपनी विद्या से मंत्र पढ़कर शेर में जान फूंक दी
शेर जिंदा होकर तीनों भाइयों को खा गया पेड़ पर
बैठा हुआ भाई अपने भाइयों के लिए बहुत दुखी
हुआ अपनी बिटिया का प्रदर्शन गलत जगह पर
करने से राधेश्याम के भाइयों को अपनी जान
गंवानी पड़ी
सीख_। कोरा अध्ययन कुछ काम का नहीं होता है हमें अपनी शक्ति का गलत प्रदर्शन नहीं करना चाहिए